देवभूमि उत्तरकाशी के प्रवेश द्वार पर बसा प्राचीन गंगेश्वर धाम।
नगर पालिका चिन्यालीसौड़ के वार्ड नंबर सात बडेथी में सिद्धपीठ पौराणिक गंगेश्वर धाम मंदिर में शिवरात्री को आते हैं हजारों भक्त ।
महाशिवरात्री के पावन पर्व पर गंगेश्वर धाम मंदिर में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए शिव भक्तो की सुबह से ही लम्बी लम्बी कतारें लगी हुई है हर कोई भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए अपने-अपने तरीके से पूजा अर्चना कर रहे हैं।
सिद्धपीठ गंगेश्वर धाम से जुड़ी लोगों की आस्थाएं और प्राचीन गाथाओं के अनुसार इस मंदिर के शिवलिंग पर 108 बेलपत्र चढ़ाने मात्र से ही भक्तो को मन वांछित फल की प्राप्ति हो जाती है। इसी मनोकामना को लेकर लोग यहां पर गंगा दशहरे और शिवरात्री के दिन हजारों की तादात में आते हैं और मनोकामना के लिए शिवलिंग पर बेलपत्र और जलाभिषेक करते हैं।
जानकारी के अनुसार करीब 50 वर्ष पूर्व यहां पर महर्षि शिवराम दास महत्यागी आए, जिनकी उम्र उस समय 12 वर्ष थी महर्षि के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने 12 वर्षों तक अन्न् गृहण नहीं किया। महर्षि केवल फल खाते थे, जिसके कारण लोग इन्हें फलहारी बाबा के नाम से जानते थे। त्याग और तपस्या में लीन फलहारी बाबा की भक्ति को देखते हुए स्थानीय लोग भी आगे आए और बड़ेथी वार्ड नंबर 7 में जन सहयोग से बाबा ने यहां पर मंदिर निर्माण और संत सेवा आश्रम की स्थापना की।
गंगा दशहरे और शिवरात्रि के दिन यहां काफी भीड़ भरा महौल होता है। महिलाएं अपने पति के साथ भगवान शिव के दरबार में इच्छित फल की प्राप्ति के लिए कामना करती है।
धार्मिक मान्यताएं हैं कि जब हरिद्वार कनखल में राजा दक्ष के यज्ञ में सती ने अपनी आहुति दी तो भगवान शिव कैलाश से श्री नारद मुनि की सूचना पर हरिद्वार कनखल के लिए चल दिए थे। एक रात्रि यहां गंगा किनारे भगवान शिव दुःखी मन से रहे मां गंगा ने भगवान शिव की सेवा स्तुति की जिस कारण यहां का नाम श्री गंगेश्वर धाम पड़ा।
गंगेश्वर धाम मंदिर के श्री महंत माधव दास त्यागी महाराज का कहना है कि महाशिवरात्री का पर्व बेहद शुभ योग में है।
यहां हर वर्ष गंगेश्वर धाम में महाशिवरात्रि बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है
